#हरियाणा में जब चुनाव संपन्न हुए तो तमाम चैनल व टीमों ने सर्वे किया। किसी ने भी भाजपा की वापसी के संकेत नहीं दिए थे, लेकिन जब आठ अक्तूबर को परिणाम आए तो हैरत भरे थे। मुतमईन कांग्रेस, जिसने जश्न की पूरी तैयारी कर रखी थी। जलेबी से लेकर ढ़ोल की व्यवस्था कर ली थी। जब शुरुआत के रुझान आए तो कांग्रेस को दम मिली। तभी जलेबी बटने भी लगी, लेकिन ज्यों ज्यों गिनती पूरी होती गई। कांग्रेस के दर से भीड़ रुख़सत होती गई। बाजे वाले लौटा दिए गए। जलेबी फेंक दी गईं।
इससे उलट बीजेपी वालों के चेहरे खिल गए। कमल तीसरी बार खिल रहा था। किसान-पहलवान का मुद्दा हवा हो गया था। सैनी की सेना व मोदी के मैजिक ने काम किया। गिनती पूरी होने तक भाजपा की झोली में 48, कांग्रेस को 37 सीट ही मिलीं। बसपा का खाता नहीं खुला। पांच सीट अन्य के खाते में आईं।
भाजपाइयों ने जश्न शुरू कर दिए। कांग्रेस ने ईवीएम, सिस्टम पर सवाल उठाए। शैलजा-हुड्डा की अंदरूनी टसल के बारे में कुछ नहीं कहा। सिर्फ़ मुस्लिम व जाट वोटरों के जरिए नैया पार लगने का सपना देख रही कांग्रेस का बड़ा झटका लगा है। इस बार वह सत्ता के करीब थी, लेकिन संगठन में दम नहीं थी। जो नेता कांग्रेस छोड़ के गए, उन्होंने भी नुकसान किया। उसके उलट भाजपा ने खट्टर को हटाने के बाद ही ज़मीन तैयार करनी शुरू कर दी थी। जो कांग्रेस के बागी थे, उनको जोड़ा। एमएलसी-राज्यसभा सदस्य तक बना दिया। शैलजा की नाराज़गी को हवा देकर दलित विरोधी नैरेटिव सेट किया। पिछड़ों को साधा। वहीं केंद्र की योजनाओं का लाभ लिया। कांग्रेस हताश है। हुड्डा के सुर अलग हैं। तो शैलजा भी अंदर ही अंदर सुलग रही हैं। कहावत है कि अब पछताए क्या होत है जब चिड़िया चुग गई खेत।
#बलराम शर्मा