छत से जबरन धार्मिक झंडा उतारने की सजा तालिबानी ?

यूपी के बहराइच में किसी की छत से धार्मिक झंडा उतारने की सजा कैसी दी गई ? इसका प्रत्यक्ष प्रमाण रामगोपाल मिश्रा है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में जो निकल कर आया है। वह तालिबानी बर्बर सोच को बयां करता है।
रिपोर्ट के अनुसार उसकी हत्या से पहले उसके साथ जमकर बर्बरता की गई। उसके शरीर पर गोली के 35 छर्रों के निशान थे। मारने से पहले रामगोपाल को यातना दी गई। धारदार हथियार से वार किए गए। पैर के नाखूनों को खींचकर बाहर निकाला गया था। सिर-माथे, हाथ पर धारदार हथियार से हमले के निशान मिले हैं। यही नहीं मारने के लिए रामगोपाल को करंट भी लगाया गया था। आंखों के पास किसी नुकीली चीज से हमला किया गया। इसके बाद ज्यादा खून बहने, शॉक और हेमरेज से उसकी मौत हो गई।
अब सवाल ये है कि तन से जुदा मानसिकता वाले लोग यहां के कानून को नहीं मानते ? अगर रामगोपाल ने गुस्ताख़ी की थी…तो पुलिस थी ? कोर्ट थी ? अब ये भी कहा जा सकता है कि जब बाबा बुलडोजर चलवाते हैं या अपराधियों के एनकाउन्टर कराए जाते हैं…वो न्याय प्रक्रिया की अनदेखी नहीं है ? तो यहां ये कहा जा सकता है कि ये त्वरित दंड की जो नई व्यवस्था अब चलाई जा रही है…इससे जनमानस को कितना फायदा है ? वह क्या सोचती है ? तो इसमें भी धार्मिक कार्ड खेले जाने के कारण दो फाड़ नजर आते हैं। जो आतंक व अपराध से पीड़ित होते हैं, वह खुशी ज़ाहिर करते हैं। जो अपराध को अपराध नहीं मानते..वह नाखुश।
फिलहाल बहराइच में जो हुआ वह दबी हुई एक चिंगारी है। ये विस्फोट में भी बदल सकती है। धार्मिक स्वंत्रता के नाम पर अब जो कुछ किया जा रहा है। उसमें धार्मिकता कम उन्माद ज़्यादा है। पिछले कुछ वर्षों में धार्मिक समभाव से ज्यादा उन्माद ज़्यादा देखने को मिल रहा है। कुछ ही लोग हैं…जो नफ़रत को हवा दे रहे हैं। इससे बच के रहने की ज़रूरत है। सतर्कता, सावधानी ज़्यादा जरूरी है।
#बलराम शर्मा