..चराग होकर मिरी रहबरी से डरता है

शाहजहांपुर/ जन मन न्यूज़
मोहल्ला अली ज़ई में गुरुवार की देर रात तक चले मुशायरे में शायरों और कवियों ने अपनी रचनाओं को प्रस्तुत किया। श्रोताओं ने भरपूर लुत्फ़ उठाया।
मदरसा नूरुलहुदा के प्रधानाध्यापक इक़बाल हुसैन उर्फ़ फूल मियां के पुत्र बिलाल ख़ान के सौजन्य से साग़र वारसी मेमोरियल ट्रस्ट के तत्वावधान में कार्यक्रम आयोजित किया गया। मुशायरे की सदारत वरिष्ठ शायर अज़ीम शाहजहांपुरी ने की।मुख्य अतिथि के रूप में समाजी कार्यकर्ता महबूब हुसैन इदरीसी उपस्थित रहे। संचालन युवा शायर इशरत सग़ीर ने किया।
इक़बाल हुसैन फूल मियां ने सभी का बैज लगाकर स्वागत किया। आग़ाज़ विधिवत रूप से तिलावते क़ुरआन और नात शरीफ से किया गया। इसके बाद ग़ज़लों और कविताओं के रूप में एक एक कर सभी रचनाकारों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं।
एक नज़र …

धनक से फूल से ख़ुशबू से और झीलों से,
तेरा ही अक्स मिला है कई वसीलों से।
-अज़ीम शाहजहांपुरी

दो का दुगना चार पढ़ा था निकला सोलह दूनी आठ,
एक तरफ़ था ज्ञान किताबी जो कुछ भोगा एक तरफ़।
-ज्ञानेन्द्र मोहन ‘ज्ञान’

कोई दीवाना तेरी जुस्तजू में,
गुलाबों की दुकां तक आ गया है।
-असग़र यासिर

नज़र आता नहीं जब भीड़ में कुछ,
जो बौने हैं उछल कर देखते हैं।
-हमीद ख़िज़र

क़यामत ही क़यामत हैं तुम्हारी झील सी आंखें,
मिसाले हुस्ने जन्नत हैं तुम्हारी झील सी आंखें।
-फ़हीम बिस्मिल

वो मिला और मैं ने शिकायत न की,
बेवफ़ाई पे बस शेर पढ़ता रहा।
-इशरत सग़ीर

तारीख़ गवाही देती है ऐ अहले क़लम क्या भूल गये,
हद से ज़ायद हरियाली भी पतझड़ की निशानी होती है।
-शमशाद आतिफ़

हर मुसीबत में खड़े रहते थे तब के लोग भी,
अब न जाने क्या हुआ सब औने पौने हो गये।
-अजय अवस्थी

मिरी चमक से मिरी रोशनी से डरता है,
चराग़ हो के मिरी रहबरी से डरता है।
-गुलिसतां ख़ान

तो क्या हुआ जो ज़िन्दगी ठुकरा गई हमें,
बरसों किसी के साथ भी तन्हा रहे हैं हम।
-साजिद सफ़दर

इमोजी से फ़क़त बहला रहा है,
कभी तो चूम आ कर गाल मेरा।
-विकास सोनी ‘ऋतुराज’

मेरे मन में मचल रही है बातों की हलचल,
उन बातों का गीत बनाना कितना मुश्किल है।
-लालित्य पल्लव

दीद को बेक़रार हैं आंखें,
इसलिए अश्क बार हैं आंखें।
-फ़ैज़ान आतिफ़

ज़माने भर में शोहरत है मगर हम कह नहीं सकते,
हमें तुमसे मुहब्बत है मगर हम कह नहीं सकते।
-रेहान क़ादरी

दिल ने दिल की सदा सुनी शायद,
प्यार की इक हवा चली शायद।
-मुनीब शाहजहांपुरी

इसके अतिरिक्त तनवीर शाहजहांपुरी, डॉ आलम, डॉ अफ़रोज़ आलम और डॉ मलिक अस्मत अली ने भी कलाम सुनाए। इस मौके पर आरिफ़ ख़ाँ,इमरान सईद ख़ाँ,लतीफ़ ख़ाँ, ख़ुशनसीब, फ़िरोज़ ख़ां, मोईन,बिलाल ख़ाँ, अदनान,शारिक़, अब्दुल क़ादिर, निफ़ासत, राहत अली, महफ़ूज़ ख़ाँ आदि उपस्थित रहे। फूल मियां ने सभी का आभार व्यक्त किया‌।