#शाहजहांपुर। “प्रणाम काकोरी” के मंचन से शोहरत पा चुकी मंथन आर्टस सोसाइटी ने साल के समापन पर एक नए नाटक का मंचन करने का बीड़ा उठाया। ये नाटक (इन टू द डार्क रूम) सत्य घटना पर आधारित बताया जा रहा है। कथावस्तु ठीक है, लेकिन अवधि एकांकी से भी कम? इस पर सवाल उठे। नाटक का निर्देशन बीएनए से पासआउट शिवा सक्सेना ने किया।
#नाटककार कृष्ण गोपाल द्वारा लिखित नाटक ‘ इन टू द डार्क रूम’ का मंचन गाँधी भवन सभागार में रविवार की शाम किया गया। नाटक का कथासार किशोरावस्था में होने वाले यौन शोषण को रेखांकित करता है..कुछ सवाल सामाजिक ताने-बाने पर भी उठाता है। जहां किसी भी अवयस्क का यौन शोषण होने पर अभिभावक उस घटना को दबाने पर लग जाते हैं। उस वक़्त कोई प्रतिरोध नहीं करता, जिस कारण शोषक के हौसले और बुलंद हो जाते हैं। उसको सजा भी नहीं मिल पाती..उल्टे जिसका शोषण होता है वही जिंदगी भर यातना भरा जीवन जीता है। सभ्य समाज को इस पर विचार करने की कोशिश करने को ये कथानक संदेश देता है।
#कथावस्तु से ये नाटक परिपूर्ण है। इसको फुललेंथ होना चाहिए था, लेकिन ये 35 मिनट में ही सिमट गया। निर्देशक को कथानक के हिसाब से इसे रोचक बनाने के लिए अभी और मेहनत की आवश्यकता है। बात वेशभूषा की करें, तो इंस्पेक्टर का सर्दी के वस्त्र पहनने और अभियुक्त को शर्ट वो भी बांह समेटकर वार्तालाप करना दर्शकों को अखरा…मुख्य भूमिका में साकेत हैं। जब इंस्पेक्टर से पूछताछ के सीन चल रहा है, तो एक अभियुक्त का जो पुलिस अधिकारी से वार्तालाप होना चाहिए..वह रियलस्टिक नहीं दिखा। इंस्पेक्टर को एक अभियुक्त सीधे इंस्पेक्टर कहकर संबोधित कर सकता है ? कहीं न कहीं वह सर या साहब कहेगा..कितना भी बड़ा रंगबाज क्यों न हो!! दूसरा, जब अदालत का सीन चला तो वकील दस फ़ीट दूर से वार्तालाप करता दिखा, जबकि उसको कटघरे के पास से ही स्वीकारोक्ति कराने के लिए जतन करने चाहिए थे..वकील तो ‘योर ऑनर’ से भी मुखातिब नहीं था। उसने सब संवाद दर्शकों पर ही उड़ेल दिए। खैर, नाटक की विषयवस्तु समसामयिक है। इसको और परिपक्व दर्शाया जा सकता है। ये पहला ही मंचन था..दर्शकों को लगा कि आगे ये नाटक और सम्प्रेषणीय रहेगा। बस, निर्देशक को और माँझने की जरूरत है।
#भूमिका की बात करें तो अनमोल सिंह ने साकेत की भूमिका निभाई, जो पत्नी पल्लवी के शोषक व अपने दोस्त के कत्ल के केस में फसा था…लंबी संवाद अदायगी को कह पाना भी जीवटता का काम है, अनमोल ने यथाशक्ति संभव करने का प्रयास किया। अभी निर्देशक को उन पर काम करने की जरूरत है। निर्देशक के साथ इंस्पेक्टर की दोहरी भूमिका निभा रहे शिवा सक्सेना को फ़ोकस एक काम पर ही करना चाहिए। अगर अभिनय की भूख है, तो निर्देशन के साथ भूमिका में बस सुभाष घई जैसा ही रोल रखें…बाक़ी पात्रों में अंकित अवस्थी, ऐश्वर्य कृष्ण मिश्र, रोहित वर्मा, अरशद आज़ाद व देवेन्द्र पाल पात्रानुरूप रहे। मंच परे सोनू सक्सेना, कोमल सक्सेना, यशदेव शर्मा, मोहित कनौजिया, मोहित बाजपेयी, पारस दीक्षित, नितेश गुप्ता का सहयोग रहा।
#नाटक का शुभारम्भ मुख्य अतिथि अपर नगर आयुक्त एसके सिंह ने दीप प्रज्वलन कर किया। उन्होंने मंचन के लिए अग्रिम शुभकामनाएं दीं। संचालक कवि डॉ इन्दु अजनबी ने पात्र परिचय कराया। इस अवसर पर काफ़ी संख्या में रंगप्रेमी उपस्थित रहे।
#अभिनेता यावर ख़ान द्वारा निर्देशित शार्ट फ़िल्म ‘ झोलाछाप डॉक्टर’ का भी प्रदर्शन किया गया। दर्शकों ने इस फ़िल्म का भरपूर लुत्फ़ उठाया। यावर खान की केंद्रीय भूमिका के साथ सुहेल, कृष्ण कुमार, अंकित सक्सेना व शिवा सक्सेना ने फ़िल्म में बेहतर काम।किया।
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