प्रमोशन की शाम…बातें तमाम

प्रसंगवश/पर उपदेश कुशल बहुतेरे…

एक कहावत तो सुनी होगी…हाथी के दांत खाने के कुछ और दिखाने के कुछ और होते हैं…ऐसा ही विश्वास के साथ होता है, आप जिस की बातों पर विश्वास करते हैं, लेकिन वहां कभी ‘विष का वास’ भी हो सकता है!! एक आदमी संस्कार, अदब, तहज़ीब की बात करता है, लेकिन मज़ाक उसकी उड़ाता है, जिसके साथ वह रहा..मंच साझा किया..एक साथ सपने देखे.. महत्वाकांक्षी सब थे..पर एक ख़ुद को सुपर समझता था…दूसरा उत्तराधिकारी। जब ईगो टकराए तो उन सभी के खिलाफ़ ख़ुद को निर्लज्ज न बताते हुए मोर्चा खोल दिया…खूब विष वमन किया…

हर सिक्के के दो पहलू होते हैं… जो विष में ही विश्वास को तलाश रहे थे, वह संगत में आ गए। पंगत वाले अलग होते चले गए…विषवासी महत्वाकांक्षी थे..तो उस डगर को पकड़ा जो ख़ुद को स्थापित करे…कभी बदायूं के कवि के अनुमोदन पर मंच पाने वाले संस्कारी जी उन्हीं की पुण्यतिथि पर लाखों की डील पर आए…है क्या, जिसकी मढ़ी चल रही है, उस पर कोई भी थाप दो आवाज़ अच्छी ही आती है…’जा पर कृपा राम की होई, वा पर कृपा करें सब कोई।” कृपा बरस रही है। मुकद्दर का सिंकंदर बने हैं।

दूसरे की बेटी की बात करते हैं…संस्कार और आभा मंडल की भी। ख़ुद की बेटी की शादी हुई… तो एक विजातीय से…सब कुछ वैसा ही था जैसा सेलिब्रिटी की संगत-पंगत में होता है… तामझाम ऐसा कि जो उनको नहीं बुलाते…रसूख दिखाने के लिए उनको बुलाया गया…फिर उनको ऑफिशियल हैंडल पर दर्शाया भी गया…ये जताने के लिए कि देखो…. हमारा सफ़ेदी की चमकार तुमसे ज़्यादा है शीशमहल वालों…गोधूलि बेला की बात करने वाले उस वक़्त तक रील बनाते रहे…बिजनेस के साथ खुद का महिमामंडन करने वाले जब दूसरे को तुच्छ समझने लगते हैं… तो बात उनको भी चुभती है जो तटस्थ हैं।

आप तो सिर्फ़ भाषण दे रहे हैं… लोग उनकी न सुन रहे जो भाषण संग राशन भी दे रहे हैं… उपदेश अगर अपने जीवन पर लागू नहीं… तो वह व्यर्थ हैं। उनके कोई मायने नहीं रह जाते। मैं सर्वश्रेष्ठ… बाक़ी सब मूर्ख…ऐसा भी नहीं है। कहावत है कि ..गाते गाते भांड हो जाता है…अगर भाषण से ही काम चलना है तो नेता क्या कम हैं…?

रविवार को एक व्यापारिक शाम को प्रमोट करने एक सिद्धहस्त व्यापारी आया…जिसने दूसरों को बहुतेरा आइना दिखाया..पर ख़ुद को उसी दायरे में रखा जो सब शोमैन करते हैं..अगर आप किसी लाचार पिता की परवरिश पर सवाल उठा रहे हैं… तो आपकी लाडली ने कौम सजातीय चुना ? अगर आप अपनी जड़ों से जुड़ने…अपव्यय व अपनी संस्कृति से जुड़ने का ढ़ोल पीट रहे हैं तो करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाकर तीन दिन तक रिसोर्ट में कौन सी रामकथा हुई ?

है क्या, पहले नेता हमको ठगते थे… बरगलाते थे…अब ये काम सरस्वती पुत्रों ने भी शुरू कर दिया है। करनी-कथनी उनकी भी सियासतदारों जैसी है…सो बहकावे में आने का नहीं… जो दिल-दिमाग को सही लगे..परिवार-समाज-देश हित मे हो वही करने का…कोई पागल या दीवाना समझता है तो समझने दो…
#समझ तो गए हुइयो☺️☺️